Janmashtami Katha: भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के जेल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। श्रीकृष्ण का जन्म बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। माना जाता है कि अष्टमी तिथि का चंद्रग्रहण होना उसका रात्रिकाल अवतार है। चंद्रमा के पुत्र बुध और श्रीकृष्ण चंद्रवंशी हैं। इसलिए कृष्ण ने बुधवार को चंद्रवंश में अपने पुत्र का जन्म लेने का दिन चुना। भगवान कृष्ण माता देवकी के आठवें पुत्र थे। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में मामा कंस जेल में हुआ था। राजा कंस की बहन माता देवकी थी। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मनाया गया।
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सत्ता का लालची था कंस
सत्ता का लालच कंस को था। उसने अपने पिता राजा उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया और उन्हें जेल में डाल दिया। राजा कंस की बहन देवकी बहुत प्यारी थी। उन्होंने वासुदेव से अपनी बहन का विवाह कराया, लेकिन वह देवकी को विदा कर रहा था। तभी एक आकाशवाणी आई कि कंस देवकी का आठवां पुत्र मार डालेगा। यह सुनकर कंस भयभीत हो गया और अपनी बहन और उनके पति वासुदेव को जेल में डाल दिया। सैनिकों ने उनके आसपास कड़ी सुरक्षा दी। देवकी और वासुदेव की सात संतानों को कंस ने मरने के डर से मार डाला।
भगवान श्रीकृष्णजी का जन्म
भगवान कृष्ण ने भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र दिन बुधवार की अंधेरी रात में देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। श्रीकृष्ण का जन्म होते ही कमरा चमक उठा। तब तक आकाशवाणी हुई कि श्रीकृष्ण ने देवकी के गर्भ में जन्म लिया था। उन्हें गोकुल में बाबा नंद के पास छोड़ दें; अगर उनके घर एक बच्ची पैदा हुई है, तो उसे मथुरा लाकर कंस को सौंप दें। कृष्ण को सूप में सिर पर रखकर वासुदेव भगवान विष्णु के घर की ओर चले गए। कारागार के दरवाजे खुल गए, सभी पहरेदार सो गए।
कान्हा चले गोकुलधाम
आकाशवाणी सुनते ही वासुदेव के हाथों की हथकड़ी खुल गई। बाल गोपाल को सूप में डालकर वासुदेव जी ने सिर पर रखकर गोकुल की ओर चल पड़े। भगवान कृष्ण को वासुदेव ने नंदजी के यहां सुरक्षित लाया और वहाँ से उनकी नवजात कन्या को वापस लाया। जब कंस को देवकी की आठवीं संतान का जन्म हुआ। वह कारागार में तुरंत आया और उस कन्या को उसके हाथ से छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा, लेकिन वह आसमान में चली गई। फिर लड़की ने कहा, “हे मूर्ख कंस! तू जन्म ले चुका है और वृंदावन पहुंच गया है।” वह कन्या योग माया थीं।
श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन को फिर सौंप दी मथुरा की राजगद्दी
कृष्ण का जन्म बाबा नंद और उनकी पत्नी मां यशोदा ने किया था। राजा कंस ने कृष्ण का पता लगाकर उन्हें मारने का बहुत प्रयास किया। लेकिन कंस की सभी कोशिशें असफल रही और कोई भी कृष्ण को मार नहीं सका। अंततः श्रीकृष्ण ने कंस को मार डाला। राजा उग्रसेन को फिर से मथुरा का राजा बनाया गया। इस तरह जन्माष्टमी व्रत कथा समाप्त हुई।
जन्माष्टमी का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी पर व्रत रखने से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। इस दिन विधिपूर्वक यशोदा नदंन की पूजा करने से धन और सुख मिलता है। जिन दंपतियों को बच्चा चाहते हैं, वे जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल की पूजा करनी चाहिए। ज्योतिषाचार्यों ने जन्माष्टमी को इस वर्ष बहुत शुभ बताया है क्योंकि यह एक विशेष ग्रह नक्षत्र में है। श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण समय है। वास्तव में, हर जन्माष्टमी शुभ होती है क्योंकि श्रीकृष्ण अपने अनुयायियों के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। लेकिन विशेष काल और नक्षत्र में श्रीकृष्ण की कथा और लीला अमृत का पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होंगे।
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